The direct interaction with book-lovers on February 7, 2017; was an unique experience in the Patna Book Fair. My friend and renowned writer Sri Bhairab Lal Das Ji was the anchor in the inter-active session held in the Bhojpuri Muktakash Manch (Patna Book Fair Open Theatre) in the afternoon.
The point of discussion revolved round the 'recently published book' of mine, "The Making of the First Cantonment of the Indian Subcontinent in Patna, 1757-1768."
[Prabuddha Biswas at Patna Book Fair, dated February 7, 2017; interacting with the audience in regards to his recently published book on Cantonment. — at Patna Book Fair at Bhojpuri Muktakash Manch.]
We interacted on various points and topics, written on various pages of the book in regards to three initial cantonments of the Indian subcontinent, justified claim of Bankipur-Danapur as the oldest functioning Cantonment, significance of Patna as one of the most important City in the then India, importance of Southern Ganges route through Patna, circumstances that led to the re-location of Bankipur cantonment to Patna and many other topics which were directly related to 18th Century Indian history.
[Prabuddha Biswas along with the Patna Book Fair 2017 Convenor Mr. Amit Jha. — at Patna Book Fair Administrative Office]
The fascinating part of the whole interaction was that people listened us patiently, without any interruption and they belonged to all age group; school children, youth , middle aged-persons and senior citizens. Bhairab Lall Das Ji also anchored the interaction so well that there were no deviations from my side and we could finish our discussion well within time-frame of fifty minute slot (2.20 PM -3.10 PM).
Again I thank book-lovers for the patient-hearing and thank organisers for providing the platform for sharing my views.
VIEWS SHARED BY BHAIRAB LAL DAS JI: - मेरे लिए बिलकुल नया अनुभव था। पटना पुस्तक मेला के मंच पर दिनांक 7 फरवरी, 2017 को इतिहासकार प्रबुद्ध विश्वास की उनकी सद्य: प्रकाशित पुस्तक "The Making of the First Cantonment of the Indian Subcontinent in Patna, 1757-1768." पर मुझे साक्षात्कार लेना था और पचास मिनट में बातों को समेट लेना था। दर्शक दीर्घा में कौन-कौन बैठे थे, पता नहीं। एक ही परिचित चेहरा- डॉ. जोश कलापुरा, प्रख्यात इतिहासकार और मेरे आदरणीय गुरुजी। बिना किसी सूचना के वे पहुंचे थे और इस एक शख्सियत की उपस्थिति मेरे इतिहास ज्ञान पर प्रश्नचिन्ह लगाने के लिए काफी था। उधर प्रबुद्ध विश्वासजी अपने विषय को लेकर इतने खोए थे कि यदि उन्हें मौका दे दिया जाता तो शायद स्मरण से पूरी किताब पाठकों को सुना देते। तिथि, घटना, नाम और क्रम, सारा कुछ स्मरण। अच्छा लगता है। जब तक अपने विषय में डुब नहीं जाएं, आनन्द नहीं आता। वैसे भी मिलिट्री हिस्ट्री पर काम करनेवाले इतिहासकारों को काफी कमी है और ऊपर से कैंटोनमेंट की हिस्ट्री। जब तक मैंने यह पुस्तक नहीं पढ़ी थी, दानापुर कैंटोनमेंट से इतनी ही नजदीकी रही कि कभी-कभार वहां से गुजरा था और यदि कोई ड्राईवर तेज गति से गाड़ी चलाते हुए पकड़ लिए गए तो मिलिट्री सैनिक बहुत ही शालीन तरीके से उन्हें अनुशासन का पाठ सिखाती थी। अब तक इतिहासकार यही समझते थे कि बैरकपुर का कैंटोनमेंट भारत का सबसे पुराना रहा है लेकिन इस किताब ने इस तथ्य को पीछे छोड़ दिया। इतना ही नहीं, मुंगेर, लखनौती या इलाहाबाद के बीच में बांकीपुर और उसके बाद दानापुर में कैंटोनमेंट बनाने की क्या आवश्यकता थी, इस पर दादा ने बहुत अच्छे तरीके से श्रोताओं को बताया। इतना ही नहीं, वार रुट के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी रहती है। मुझे इस विषय में इसलिए भी दिलचस्पी रही है कि मैं बुद्धिस्ट पीरियड से लेकर अब तक के रूटों पर बहुत दिलचस्पी से अध्ययन किया हूँ, खासकर उत्तर पथ को लेकर। 'सार्थवाह' भी काफी रुचि लेकर पढ़ी है। दादा ने जब बिहार के वार रूट के बारे में बताया तो सुनते ही बनता था। इतिहास तो आनन्द की चीज होती है और यदि आपको तथ्यों का क्रम पता है तो इतिहास भी संगीत से कम नहीं होती। सिर्फ डुबना होता है। थैंक्स दादा, मुझे एंकर के रूप मे नामित करने के लिए। पटना पुस्तक मेला, 2017, मेरे लिए एक नई अनुभूति भी। मंच से उतर कर बाहर आया और एक साथ सर्वश्री सीटु तिवारी, सविता और रिंकू झा को इस बात का उलाहना भी दिया कि ये तीनों मेरे सामने ही आईस क्रीम चबा रही थी और मैं मंच पर बैठकर विवश होकर देख मात्र रहा था। सीटु ने श्री अनीश अंकुरजी से भेंट कराया। लेकिन उनके साथ खड़े एक रंगकर्मी ने प्रभात खबर में छपी मेरी गांधी-चम्पारण के दूसरी कहानी के शीर्षक के बारे में पूरी शिकायत की जिसमें रंगकर्मी को जूते मारने वाली कहानी थी।
For more information, please visit my website on Heritage & Culture: - www.forgottenpast.in
[Hindustan Patna Live, February 8, 2017]
[Excerpts from Hindustan Patna Live dated February 8, 2017]
[Hindustan Patna Live, Dated February 25, 2017]
[ Patna Jagaran City, February 8, 2017]
[Excerpts from Patna Jagaran City, February 8, 2017]
[DB (Dainik Bhaskar) Star, February 8, 2017]
[Excerpts from DB (Dainik Bhaskar) Star, February 8, 2017]
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